Loan EMI Rules – यहां सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले पर बात हो रही है, जो उन लोगों के लिए खास है जो लोन लेकर उसकी EMI भरने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं। अगर आपने भी कोई लोन लिया है, तो ये खबर आपके लिए काम की हो सकती है!
लोन EMI न भरने पर क्या होगा?
कई लोग लोन तो ले लेते हैं, लेकिन अलग-अलग वजहों से उसकी EMI समय पर नहीं भर पाते। ऐसे में बैंक या फाइनेंस कंपनियां रिकवरी के लिए कड़े कदम उठाने लगती हैं, और मामला गाड़ी या प्रॉपर्टी जब्त करने तक पहुंच जाता है। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर एक अहम फैसला सुनाया है, जो लोन लेने वाले और देने वाले—दोनों के लिए जरूरी है।
क्या कहता है कानून?
अगर आपने कार लोन लिया है, तो आपको EMI समय पर भरनी होगी, वरना फाइनेंसर आपकी कार जब्त कर सकता है। जब तक आप पूरी EMI नहीं चुका देते, तब तक कार पर असली मालिकाना हक बैंक या फाइनेंस कंपनी का ही रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अगर कोई लोन डिफॉल्टर है, तो फाइनेंसर कानूनी तौर पर वाहन को जब्त कर सकता है, और इसे अपराध नहीं माना जाएगा।
कैसे पहुंचा मामला सुप्रीम कोर्ट तक?
उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर के एक शख्स ने 2013 में फाइनेंस पर गाड़ी खरीदी थी। उसने 1 लाख रुपये डाउनपेमेंट कर दिया, और बाकी रकम के लिए लोन लिया। शुरुआत में EMI समय पर दी, लेकिन बाद में बंद कर दी। करीब 5 महीने तक कंपनी ने EMI का इंतजार किया, लेकिन जब शख्स ने पैसा नहीं चुकाया, तो कंपनी ने कार उठा ली। मामला निचली अदालत से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
पहले कंज्यूमर कोर्ट ने ग्राहक के पक्ष में फैसला दिया
इस मामले में ग्राहक ने उपभोक्ता अदालत (Consumer Court) में केस किया। कंज्यूमर कोर्ट ने माना कि बिना नोटिस दिए गाड़ी उठाना गलत था और फाइनेंसर पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
बाद में फाइनेंसर कंपनी इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद माना कि ग्राहक EMI भरने में असफल रहा था, इसलिए फाइनेंसर ने इंतजार करने के बाद कानूनी तौर पर गाड़ी अपने कब्जे में ली। यह कोई अपराध नहीं था। हालांकि, बिना नोटिस दिए गाड़ी उठाने को गलत मानते हुए कोर्ट ने फाइनेंसर पर 15,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
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लोन रिकवरी के नियम क्या कहते हैं?
अगर कोई लोन डिफॉल्टर हो जाता है, तो उसके साथ भी कुछ नियमों के तहत ही व्यवहार किया जा सकता है:
- लोन रिकवरी एजेंट डिफॉल्टर से दुर्व्यवहार नहीं कर सकते।
- वे रात के समय कॉल या विजिट नहीं कर सकते।
- बिना सूचना दिए किसी भी ग्राहक को फ्रॉड घोषित नहीं किया जा सकता।
बैंक और फाइनेंस कंपनियां मनमानी नहीं कर सकतीं!
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि किसी को डिफॉल्टर घोषित करने से पहले उसे अपना पक्ष रखने का पूरा मौका मिलना चाहिए। बिना सूचना दिए किसी को ब्लैकलिस्ट करना गलत है क्योंकि इससे उसका CIBIL स्कोर खराब हो सकता है और आगे कोई भी लोन लेना मुश्किल हो सकता है।
सीख क्या है?
अगर आपने लोन लिया है, तो समय पर EMI चुकाने की कोशिश करें। अगर आप किसी वजह से EMI नहीं भर पा रहे हैं, तो बैंक या फाइनेंस कंपनी से बात करें और अपनी स्थिति साफ-साफ बताएं। अगर वे आपकी कोई बात नहीं सुन रहे, तो कानूनी विकल्प भी खुले हैं।
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अब आपको ये फैसला कैसा लगा? क्या आपको लगता है कि बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को और लचीला होना चाहिए? अपनी राय बताइए!