Income Tax Rules – अगर आप खेती की जमीन खरीदने या बेचने की सोच रहे हैं, तो ये खबर आपके लिए अहम हो सकती है। 2025 में आने वाले नए इनकम टैक्स नियमों के तहत खेती की जमीन पर टैक्स को लेकर कुछ बड़े बदलाव किए गए हैं। ये नियम खासकर उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो कृषि भूमि खरीदने या बेचने की योजना बना रहे हैं। तो चलिए, आसान भाषा में समझते हैं कि इन बदलावों का आप पर क्या असर पड़ेगा और किन मामलों में आपको टैक्स छूट मिल सकती है।
खेती की जमीन के दो मुख्य प्रकार
खेती की जमीन को आमतौर पर दो हिस्सों में बांटा गया है – ग्रामीण कृषि भूमि और शहरी कृषि भूमि।
- ग्रामीण कृषि भूमि – ये वे खेत होते हैं, जो गांवों या कम घनी आबादी वाले इलाकों में आते हैं। इस तरह की जमीन पर टैक्स से जुड़ी छूट मिलती है।
- शहरी कृषि भूमि – ये वे खेत होते हैं, जो नगर पालिका या किसी शहरी क्षेत्र में आते हैं। इन पर आमतौर पर कैपिटल गेन टैक्स लागू होता है।
अगर आपकी जमीन शहरी क्षेत्र में आती है, तो आपको इसे बेचने पर टैक्स भरना पड़ेगा। वहीं, अगर आपकी जमीन ग्रामीण क्षेत्र में है, तो आपको इस टैक्स से राहत मिल सकती है।
कौन सी जमीन पर लगेगा टैक्स?
आयकर अधिनियम के अनुसार, अगर कोई खेती की जमीन इन मानदंडों में आती है, तो उस पर टैक्स लागू होगा –
- जमीन किसी नगर पालिका, टाउन एरिया कमेटी या कैंटोनमेंट बोर्ड की सीमा में हो और उस क्षेत्र की आबादी 10,000 से ज्यादा हो।
- अगर कोई जमीन किसी ऐसे शहरी क्षेत्र से 8 किलोमीटर के दायरे में हो, जिसकी जनसंख्या 10 लाख से अधिक हो।
अगर आपकी जमीन इन शर्तों को पूरा करती है, तो वह आयकर कानून में कृषि भूमि नहीं मानी जाएगी और उस पर टैक्स देना होगा।
क्या आपको टैक्स में छूट मिलेगी?
अगर आपकी जमीन ऊपर बताए गए नियमों के तहत नहीं आती है, यानी वह किसी ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है, तो आपको टैक्स देने की जरूरत नहीं होगी। इसका मतलब यह है कि अगर आप ग्रामीण कृषि भूमि बेचते हैं, तो आपको कैपिटल गेन टैक्स से छूट मिलेगी।
शहरी कृषि भूमि बेचने पर टैक्स कैसे लगेगा?
अगर आपकी जमीन शहरी क्षेत्र में आती है, तो उसे बेचते समय आपको कैपिटल गेन टैक्स देना होगा। ये टैक्स दो तरह का हो सकता है –
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG)
- अगर आपने जमीन को 24 महीने से ज्यादा समय तक रखा है और फिर बेचा है, तो उस पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा।
- इस पर 20 प्रतिशत की दर से टैक्स लगेगा।
- साथ ही, आपको इंडेक्सेशन बेनिफिट भी मिलेगा, जिससे आपकी टैक्स देनदारी कुछ कम हो सकती है।
शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG)
- अगर आपने जमीन को 24 महीने से कम समय तक रखा है और फिर बेचा है, तो यह शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन के तहत आएगा।
- इस पर टैक्स आपकी आयकर स्लैब दरों के हिसाब से लगेगा। यानी अगर आप ज्यादा कमाते हैं, तो आप पर टैक्स की दर भी ज्यादा होगी।
2025 में नए आयकर स्लैब और टैक्स छूट
सरकार ने 2025 के बजट में इनकम टैक्स स्लैब में भी बदलाव किया है। नए नियमों के तहत –
- ₹12 लाख तक की वार्षिक आय पर कोई टैक्स नहीं लगेगा।
- सैलरीड कर्मचारियों को ₹12.75 लाख तक की आय पर स्टैंडर्ड डिडक्शन के साथ टैक्स में छूट मिलेगी।
इसका मतलब यह है कि जो लोग मध्यम वर्ग में आते हैं, उन्हें टैक्स में राहत मिलेगी और उनकी बचत बढ़ेगी।
खेती की जमीन पर नए टैक्स नियमों का असर
अगर आप खेती की जमीन खरीदने या बेचने की सोच रहे हैं, तो इन बदलावों का असर आपके फैसले पर पड़ सकता है।
किन लोगों को नुकसान होगा?
- वे लोग जो शहरी कृषि भूमि खरीद-बेच कर मुनाफा कमाना चाहते हैं, क्योंकि अब उन्हें अधिक टैक्स देना पड़ेगा।
- जिनकी खेती की जमीन शहरों के आसपास है, क्योंकि वे टैक्स छूट के दायरे से बाहर हो सकते हैं।
किन लोगों को फायदा होगा?
- वे किसान जिनके पास ग्रामीण कृषि भूमि है, क्योंकि उन्हें टैक्स छूट का फायदा मिलेगा।
- मध्यम वर्ग के वे लोग, जिनकी आमदनी ₹12 लाख से कम है, क्योंकि उन्हें टैक्स में राहत दी गई है।
क्या करें?
अगर आप खेती की जमीन खरीदने या बेचने की सोच रहे हैं, तो आपको इन बातों का ध्यान रखना चाहिए –
- पहले यह जांचें कि जमीन किस श्रेणी में आती है – ग्रामीण या शहरी?
- अगर जमीन शहरी कृषि भूमि है, तो टैक्स देनदारी का आकलन करें।
- अगर आप लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स से बचना चाहते हैं, तो कम से कम 24 महीने तक जमीन को होल्ड करें।
- अगर आप टैक्स बचाना चाहते हैं, तो टैक्स एक्सेम्प्शन वाले इन्वेस्टमेंट ऑप्शंस पर विचार करें।
2025 में लागू होने वाले नए इनकम टैक्स नियमों से खेती की जमीन खरीदने और बेचने वालों को बड़ा झटका लग सकता है। खासकर शहरी क्षेत्रों में स्थित कृषि भूमि पर अब टैक्स की दरें बढ़ जाएंगी। वहीं, ग्रामीण कृषि भूमि के मालिकों को राहत मिल सकती है, क्योंकि उन्हें कैपिटल गेन टैक्स से छूट मिलेगी।
अगर आप जमीन खरीदने या बेचने की योजना बना रहे हैं, तो इन नए नियमों को ध्यान में रखकर ही कोई फैसला लें। टैक्स सेविंग के लिए विशेषज्ञों से सलाह लेना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है।